Abstract:
स्त्री- विमर्शकारों ने सीमित सामग्री के आधार पर भारतीय स्त्री-लेखन के शुरूआती दौर पर अध्ययन करके पाया कि लोकसाहित्य के बाद ऋग्वेद, भारत में स्त्री-लेखन का सबसे पहला उपलब्ध दस्तावेज़ है। ऋग्वेद मूलत: मंत्रों का संग्रह है। इन मंत्रों की रचनाशीलता का श्रेय ऋषियों और तत्कालीन विदुषी ऋषिकाओं को दिया जाता है। इन ऋचाओं में देवताओं की स्तुति के साथ-साथ तत्कालीन स्त्रियों की स्थिति एवं उनकी अस्मिता से जुड़े सवालों के छुटपुट संकेत मिलते हैं। स्त्री लेखन के इस दस्तावेज़ को स्त्रीवादी दृष्टिकोण से समझना और उनके रचनात्मक सामर्थ्य को प्रकाश में लाना आवश्यक है। इस शोध आलेख का उद्देश्य वैदिक समाज में स्त्रियों की स्थिति को प्रकाश में लाना, वैदिक ऋषिकाओं की उक्तियों का अध्ययन करना और उनकी उक्तियों के माध्यम से अभिव्यक्त स्त्री-संवेदनाओं को तत्कालीन समाज के संदर्भ में विश्लेषित करना है। इस अध्ययन के लिए पाठ विश्लेषण और अंतरजाल पर पुस्तक आलेख, विडियो रूप में उपलब्ध आलोचनात्मक सामग्री का आधार लिया गया है।